लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने के सन्दर्भ में ऋषभ भट्ट द्वारा

चुनाव लोकतंत्र का प्रतीक है,यह जनता के शक्ति का प्रतीक है|बिना चुनाव के
लोकतंत्र निरर्थक है|चुनाव देश के कार्यतंत्र को एक नयी उर्जा देता है और उसे
नवनिर्मित भी करता है|पर इन बातो से इंकार नहीं किया जा सकता की चुनावो के
दौरान जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है,देश के सरकारी खजाने पअतिरिक्त बोझ
आता है और भारत जोकि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और जहा सत्ता का
विभाजन केंद्र और राज्यों में विभाजित है और जहा स्थानीय और पंचायती व्यवस्था
अपनाई जाती हो वहां चुनावों का सामना आम जनता से हर कदम पर होता है|चाहे
वह लोकसभा का चुनाव हो,चाहे विधानसभा का हो,चाहे स्थानीय प्रशासन के
सदस्य चुनना हो जैसे नगर पालिका ,नगर पंचायत या ग्राम पंचायत|अतः कम
अवधि में ही कई बार चुनाव होते है जिससे जनता को अनियमितता और परेशानी
होती है और उसके साथ साथ निर्वाचन आयोग पर भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ आता
है|इसी कारण वश बीते कुछ वर्षो से देश के दो बड़े स्तर के चुनाव लोकसभा और
विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की चर्चा हो रही है|
इस विचार को मूर्तरूप देने में तो अभी समय है पर इसके लाभ होने के साथ साथ
कुछ नुकसान भी है|वैसे लोकसभा और विधानसभा चुनाव स्वतंत्रता मिलने के
पश्चात १९५२,१९५७,१९६२ और १९६७ में साथ साथ हो चुके है परन्तु १९६८
में बिहार,उत्तर प्रदेश,राजस्थान,पंजाब,पश्चिम बंगाल,ओडिशा,तमिलनाडु और
केरला विधानसभाएं उनके अवधि पूरे होने से पहले ही भंग कर दी गयी जिससे
चुनावों में अनियमितिता आ गयी|sa
संसदीय समिति की ७९वीं रिपोर्ट २०१५ में पेश की गयी जिसके अध्यक्ष कांग्रेस
पार्टी के सदस्य सुदर्शन कचिअप्पान थे |यह रिपोर्ट संसद के दोनो सदनों में पेश की
गयी|समिति ने अपनी रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ
कराने के विचार को बल दिया और इसे सदन में बहस के लिए एक राष्ट्रहित का मुद्दा
बताया|समिति के अनुसार एक साथ चुनाव कराने से देश को कई समस्याओं से नहीं
जूझना पड़ेगा इस रिपोर्ट के कुछ बिंदु इस प्रकार है—

 एक साथ चुनाव संपन्न कराने से देश को अत्यधिक आर्थिक बोझ से मुक्ति
मिलेगी|निर्वाचन आयोग के अनुसार इस समय चुनावों पर करीब ४५००
करोड़ रुपये का खर्च आता है जिसमे भारी कटौती होगी|
 चुनावों के कारण मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होने से केंद्र सरकार और
राज्य सरकारों के योजनाओ के तहत चल रहे विकास कार्यो में अवरोध पैदा
होता है|यह प्रशासन के सुचारू रूप से चलने में भी बाधक होता है| बार बार
चुनाव करने से मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट की अवधी बढती है जोकि पिछड़ेपन
का कारण बनती है|
 बार बार चुनाव होने पर आम जनता को भारी समस्या झेलनी पड़ती
है|जैसे—रैलियों से यातायात में अवरोध,ध्वनि प्रदूषण,शहरों में अत्यधिक
भीड़,जगह जगह चुनावी इश्तहार से शहर में गन्दगी इत्यादि|
 बार बार चुनाव होने पर सुरक्षा बलों की भी जिम्मेदारी बढती है और उन्हें
संवेदनशील जगहों पर होने की बजाय चुनावी स्थलों पर तैनात रहना पड़ता
है|
इसके अतिरिक्त चुनावों को एक साथ कराने के और कुछ फायदे है जैसे—बार
बार चुनाव होने से सरकारी कर्मचारियों की चुनावों में तैनाती होती है इससे वे
अपने मूल कार्य को नहीं कर पाते|यदि चुनाव एक बार हुए तो अगले पांच साल
तक केवल अपने मूल कार्य में सेवा दे पायेंगे|राजनीतिक कार्यकर्ताओ की भूमिका
केवल चुनावों तक ही सीमित हो उठती है,अगर चुनाव एक साथ हुए तो वे
सामजिक कार्यो में अपना समय दे पायेंगे और सरकार की नीतियों से जनता को
अवगत करा पायेंगे|
भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी समिति को कुछ बहुमूल्य
सुझाव दिए|विभिन्न सुझावों को गहनता से अध्ययन करने के बाद स्थायी समिति
ने भी चुनावों के दौरान कुछ बड़े बदलाव करने के सुझाव दिए|
 लोकसभा और विधानसभा की अवधि केवल आपातकाल की स्थिति के
दौरान ही बदले जा सकते है|परन्तु जिन राज्यों के विधानसभा की अवधि

लोकसभा चुनाव के ६ महीने से पहले या ६ महीने बाद समाप्त हो रही
है,उनके चुनाव लोकसभा के साथ ही कराये जा सकते है|
 चुनावों को दो चरणों में बाँट सकते है जैसे—कुछ राज्यों के विधानसभा के
चुनाव लोकसभा के ५ साल की अवधि के मध्य में और बाकी के लोकसभा
के दौरान कराये जा सकते है|
 किसी एक वर्ष में रिक्त हुयी सीटों पर उपचुनाव एक साथ कराये जा सकते
है|
 यदि लोकसभा किसी कारणवश भंग हो जाये तो यदि बचा हुआ कार्यकाल
लम्बा हो तो पुनः चुनाव कराये जा सकते है जिसका कार्यकाल केवल भंग
हुई लोकसभा के बचे हुए कार्यकाल तक ही हो और यदि बचा हुआ
कार्यकाल कम हो तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है|यही स्थिति
विधानसभा के साथ भी लागू की जा सकती है|
समिति के रिपोर्ट पर राजनीतिक पार्टियों ने अलग अलग प्रतिक्रियाएं व्यक्त
की|कांग्रेस ने इसे अलोकतांत्रिक बताया और भाजपा ने इसका समर्थन
किया|
इस कदम से देश को कुछ नुकसान भी हो सकते है जैसे—
 एक साथ पूरे देश में चुनाव कराने पर निर्वाचन आयोग को व्यवस्था
करने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता
है|जैसे—कर्मचारियों की कमी,सुरक्षाबलों की कमी इत्यादि|
 एक साथ चुनाव करने पर वी.वी.पैट और इ.वी.एम.मशीनों की भारी
खेप की जरूरत होगी|निर्वाचन आयोग ने इसक खर्च करीब ९२००
करोड़ अनुमानित किया है और इन मशीनों को हर १५ साल में बदलने
की भी आवश्यकता पड़ती है|
 बार बार चुनाव होने से जनप्रतिनिधि समस्यायों पर ध्यान देते है यदि
इन्हें पांच वर्ष में केवल एक बार के लिए सीमित किया गया तो वे
नदारद ही रहेंगे|
 एकसाथ ढेर सारा खर्च उस वर्ष के बजट को प्रभावित कर सकता है|

 राष्ट्रीय,राज्यीय,स्थानीय चुनाव एक साथ होने से अत्यधिक लोग
असमंजस में पड़कर गलत व्यक्ति का चुनाव कर सकते है|
 अगर किसी भी राजनीतिक पार्टी की लहर हुई तो हर स्तर पर उस
पार्टी की सरकार बन सकती है जो की एक कमजोर विपक्ष का कारण
होगा और यह लोकतंत्र के लिए अनुचित होगा|

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