राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद

कभी कभी इतिहास कुछ ऐसे घाव छोड़ जाता है जो सदा के लिए लाइलाज हो जाते है|भारत को तो ऐसे घाव विरासत में मिले है जैसे-कश्मीर विवाद,अयोध्या विवाद,पाकिस्तान,बंगलादेशी शरणार्थी| अगर हम इन विवादों को गौर से देखे तो निष्कर्ष ये निकलेगा की इन सारी विवादों की जड़ धार्मिक मनमुटाव ही है जो की इस देश के लिए विडम्बना है जो गंगा जमुनी तहजीब का एक प्रतीक माना जाता है और विश्व में इसकी मिसाल दी जाती है|
इन सब विवादों में अयोध्या रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद प्रमुख है जिससे भारत का हर इन्सान वाकिफ है और यह वाद विवाद का विषय हमेशा से रहा है,इसके साथ साथ चुनावों के दौरान नेताओ के लिए ये लोगो की भावनाओ को भड़का के वोट चुराने का जरिया भी बन जाता है|इस विवाद के कारण कई दंगे हुए जिनमे कई निर्दोष मौत की भेंट चढ़ गए|यह मुद्दा चुनावों के दौरान ज्वलंत हो जाता है और चुनावों के समापन के बाद नेताओ की तरह यह भी अदृश्य हो जाता है,जो यह दर्शाता है की राजनीतिक पार्टिया इस मुद्दे के अंतिम हल के लिए कितना सजग और गंभीर है|
ज्यादातर इतिहासकारों के मुताबिक बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर के सेनापति मीर बाकी  ने सन १५२८ ईस्वी में कराया था,परन्तु आज भी इस पर इतिहासकारों में विवाद है कुछ का कहना है की यह औरंगजेब काल में निर्मित हुआ था वही कुछ इतिहासकारों के मुताबिक इसका निर्माण रामजन्मभूमि पर नहीं हुआ था|इस मस्जिद को मस्जिद-ऐ-जन्मस्थान भी कहते है जहा हिन्दू और मुस्लिम दोनों प्रार्थना करने आते थे,मुस्लिम मस्जिद के अन्दर नमाज पढ़ा करते थे और हिन्दू मस्जिद के बाहर पर परिसर के अन्दर ही आराधना करते थे|अंग्रेजो ने धार्मिक विवाद से बचाव के लिए बाहर और अन्दर को एक बाड़े से अलग कर दिया था|सबसे पहले १८५० में इस जगह को लेकर विवाद हुआ जब कुछ हिन्दुओ ने स्थल पर मंदिर निर्माण की मांग की परन्तु उनकी मांग को ठुकरा दिया गया| १९८५ में वैष्णव संप्रदाय से ताल्लुक रखने वाले संगठन निर्मोही अखाड़ा ने अदालत में उस विवादित स्थल को संगठन को देने की अपील की परन्तु अदालत ने इस अपील को खारिज कर दिया||सन १९४६ में अखिल भारतीय रामायण महासभा का गठन राम मंदिर बनवाने के उद्देश्य से हुआ|१९४९ में संत दिग्विजय नाथ  इस संस्था के सदस्य बने, जो गोरखनाथ मठ के तत्कालीन मठाधीश थे और उन्होंने विवादित स्थल पर नव दिवसीय रामचरितमानस पाठ का आयोजन करवाया और २२ दिसम्बर १९४९ को मस्जिद के अन्दर राम और सीता की मूर्तियाँ देखी जिसे हिंदूवादी संगठनो ने चमत्कार बताया और मंदिर बनवाने की मांग ने और तूल पकड़ा परन्तु तत्कालीन नेहरु सरकार ने मूर्तिया हटाने के आदेश दिए पर स्थानीय अधिकारी के.के.नायर ने दंगो की आशंका जताते हुए आदेश को मानाने से इंकार कर दिया और विवादित स्थल पर ताले लगा दिए गए परन्तु मूर्तियाँ नहीं हटाई गयी|इस घटने के बाद मुस्लिम पैरोकार भी अदालत चले गए और मामला अदालत में चलता रहा|
सन १९८६ में फैजाबाद की जिला अदालत ने विवादित स्थल के ताले खोलने के आदेश दिए परन्तु उस फैसले को जिस तत्परता और शीघ्रता से लागू किया गया वो आश्चर्यचकित कर देने वाला था|अदालत के फैसले के ४० मिनट के अन्दर ही तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार ने जिला प्रशासन को ताले खुलने के आदेश दिए और इस घटना का प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया,जिससे मुस्लिमो को लगा की यह पहले से ही सुनियोजित था और यह सामान्य अदालती प्रक्रिया नहीं थी|दरअसल राजीव गाँधी सरकार ऐसा इसलिए क्युकी शाह बनो मसले के बाद उनके सरकार की छवि मुस्लिमपरस्त और हिंदुविरोधी बन चुकी थी और यह पैतरा उसको बदलने के लिए किया गया|
इलाहाबाद में हुए कुम्भ मेले में हिंदूवादी संगठनो ने विवादित स्थल पर नवम्बर १९८९ में शिलान्यास का फैसला लिया |१७ अक्टूबर १९८९ को विश्व हिन्दू परिषद् के कुछ नेता राजीव सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह से मिले और शिलान्यास में कोई दिक्कत न आये इसकी मांग की और इस प्रस्ताव को बूटा सिंह मान गए|बूटा सिंह और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने मिलकर अयोध्या में शिलान्यास कराया जिसके कारण देश में धार्मिक भावनाओ ने उफान पकड़ा और यह दंगो का कारण बना और देश भर में ७०६ दंगे हुए और करीब १२०० लोग मारे गए जिनमे सबसे ज्यादा मौते बिहार के भागलपुर में हुई जहा दो महीने तक दंगे चलते रहे|
१९८९ के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से वी.पी.सिंह की सरकार बनी|इन लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को ८८ सीटें मिली|२५ सितम्बर १९९० को भाजपा के वरिष्ठ और हिंदूवादी छवि के नेता लालकृष्ण अडवानी ने सोमनाथ से अयोध्या तक १०००० किलोमीटर की रथ यात्रा प्रारंभ की जिसका उद्देश्य आन्दोलन के लिए जनसमर्थन जुटाना था|रथ यात्रा के कारण आडवानी आन्दोलन के नेता के रूप में उभरे|लेकिन २३ सितम्बर १९९० को आडवानी को समस्तीपुर बिहार में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया|इसके बावजूद कई कारसेवक अयोध्या पहुचे और विवादित ढाँचे को नुकसान पहुचाने की कोशिश की अतएव पुलिस और कारसेवको में झड़प हुई जिसमे कई कारसेवक मारे गए और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया जिससे सरकार गिर गयी और कांग्रेस पार्टी के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने,परन्तु ये सरकार ज्यादा दिन न चल सकी और १९९१ में पुनः आम चुनाव हुए|चुनावों के दौरान ही राजीव गाँधी की हत्या कर दी गयी और केंद्र में पुनः कांग्रेस की सरकार बनी और नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री चुने गए|इसके साथ उत्तर प्रदेश,राजस्थान,हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनी| उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बनाया गया| मुख्यमंत्री बनने के एक महीने बाद ही कल्याण सिंह ने मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर बनाने का प्रण
लिया|दौरे के बाद कल्याण सिंह ने विवादित ढांचा और उसके पास की २.७७ एकड़ जमीन के अधिग्रहण का फैसला लिया और ये जमीन रामजन्मभूमि न्यास को एक रुपये की लीज पर दे दी गयी|इससे आहत हुए मुस्लिम संगठन  इस फैसले के खिलाफ अदालत चले गए और इस फैसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया और वहाँ पक्के निर्माण पर रोक लगा दी|
तत्पश्चात विश्व हिन्दू परिषद् ने ९ जुलाई से कारसेवा प्रारंभ करने की घोषणा की परन्तु प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप और विश्व हिदू परिषद् के नेताओ की प्रधानमंत्री के साथ कई बैठकों के बाद यह रोक दिया गया| नरसिम्हा राव ने दोनों पक्षों यानि विश्व हिन्दू परिषद् और बाबरी एक्शन कमिटी के साथ कई बैठके की और इन दोनों पक्षों की बैठकों में मध्यस्थता भी की|परन्तु विश्व हिन्दू परिषद् की अगुवाई में हुए धर्म संसद ने ६ दिसम्बर से पुनः कारसेवा चालू करने का अलान कर दिया जिससे मुस्लिम संगठनो ने किसी भी बातचीत से इंकार कर दिया|
५ दिसम्बर की रात को लखनऊ में बहुत बड़ी रैली हुई और ६ दिसम्बर को करीब ढाई लाख लोग विवादित स्थल के पास इकट्ठा हुए और थोड़ी ही देर में कारसेवक ढांचे के ऊपर चढ़ गए और ढांचे को तोड़ने लगे|उस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी,मुरली मनोहर जोशी,प्रमोद महाजन,उमा भारती मौजूद थे|इस दुखद घटना के बाद भाजपा के सत्ता वाली सारी राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया |इस घटना के पश्चात आडवानी और अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी निंदा की और इस घटने को दुखद बताया |इस विध्वंस के परिणाम स्वरुप देश भर में कई भीषण दंगे हुए और करीब ३००० के ऊपर लोगो की निर्मम मृत्यु हुई और मुंबई में कई सीरियल ब्लास्ट हए|इस घटना की जांच के लिये केंद्र सरकार ने  लिबेर्हन आयोग का गठन किया जिसमेकई वरिष्ठ नेताओ को दोषी ठहराया गया जैसे—अटल बिहारी वाजपेयी,लालकृष्ण आडवानी,उमा भारती, विजयाराजे सिंधिया,प्रमोद महाजन,बाल ठाकरे,कल्याण सिंह,विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष अशोक सिंघल,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता गोविन्दाचार्य|आयोग ने इन लोगो को भड़काऊ भाषण देना,विध्वंस रोकने के लिए कमजोर कोशिश करना जैसे आरोप लगाए|आयोग ने कल्याण सिंह को मुख्यतः ये खबर सार्वजनिक करने की कारसेवको पर किसी भी रूप से गोली नहीं चलायी जायेगी सबसे बड़ी गलती बताया|
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के १९७०,१९९२ और २००३ के स्थल की खुदाई में यह पाया गया की मस्जिद निर्माण से पहले यहाँ कोई धार्मिक और पूज्यनीय स्थल था|
यह मामला इलाहाबाद  हाईकोर्ट में चलता रहा और अंततः २०१० में हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को तीन बराबर भागो में विभाजित कर दिया और ये मुस्लिम,हिन्दू और निर्मोही अखाड़ा को दे दी गयी|इस फैसले को किसी भी पक्ष ने स्वीकृति नहीं दी और मामले को उच्च न्यायालय स्थानातरित कर दिया गया|जहा न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को ख़ारिज कर दिया और आडवानी और अन्य नेताओ पर फिर से सुनवाई के आदेश दिए और  लखनऊ के ट्रायल कोर्ट को दो साल के भीतर फैसला सुनाने के आदेश दिए|५ दिसम्बर २०१७ को सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमे मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र,न्यायाधीश अब्दुल नज़र,न्यायाधीश अशोक भूषण ने हर दिन न्यायलय में सुनवाई करने का फैसला लिया जिससे नतीजे शीघ्र आ सके और समाधान की सुनवाई जल्दी हो|
न्यायलय ने यह भी सुझाव दिए की अगर मामला कोर्ट के बाहर सुलझ जाए तो यह बेहतर होगा|आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने भी दोनों पक्षों से मिलकर मध्यस्थता करने की बात की पर यह बेनतीजा रहा और इसका कई संगठनो ने विरोध भी किया|अगली सुनवाई अब ८ फ़रवरी को होगी|
भारतीय जनता भी अब उच्च न्यायलय से आशा रखती है की इस लंबित मामले का समाधान बिना विलम्ब के हो और हमारे मौकापरस्त नेता इसका राजनीतिक इस्तेमाल न कर सके|धार्मिक भावनाओ से जुड़ा होने के कारण मामला जटिल और संवेदनशील है और इसका समाधान तभी संभव है जब दोनों पक्ष अपने अहंकार को पीछे रखे और समाधान निकलने को सर्वोपरी रखे|संभव हो तो दोनों पक्ष जहा जरुरी हो वहा समझौते करने से परहेज न करे|शिया वक्फ बोर्ड ने इसकी तरफ कदम भी बढ़ाये है और राम मंदिर बनवाने का समर्थन किया है बशर्ते एक मस्जिद वहा से किसी अन्य जगह जैसे सरयू तट पर या लखनऊ शहर में बनवाया जाये,परन्तु शिया वक्फ बोर्ड इस मामले में पक्षकार नहीं है इसीलिए उसके फैसले से मामले की जटिलता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा|इतने लम्बे समय से मामला चलने के कारण कई पैरोकारो की मौत भी हो चुकी है और यह भारतीय न्याय व्यवस्था की शिथिलता दर्शाता है ,यदि न्याय व्यवस्था को अपनी निष्पक्षता और विश्वसनीयता को बरकरार रखना है तो बिना विलम्ब किये इस मामले का समाधान करना होगा|

-RISHABH  BHATT
    

Comments

Popular posts from this blog

भारत की स्वच्छता में मेरा योगदान

HOW TO WRITE A BLOG……

Atheism in India by Suyash Awasthi